Question
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निर्देश-नीचे दिए गए पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए-
एक धूप का हँसमुख टुकड़ा
तरु के हरे झरोखे से झर
अलसाया है धारा धूल पर
चिड़िया के सफ़ेद बच्चे सा!
उसे प्यार है भू-रज से
लेटा है चुपके!
वह उड़कर
किरणों के रोमिल पंख खोल
तरु पर चढ़
ओझल हो सकता फिर अमित नील में!
लोग समझते
मैं उसको व्यक्तित्व दे रहा
कला स्पर्श से!
मुझको लगता वाही कला को देता निज व्यक्तित्व
स्वयं व्यक्तिवान ज्योतिर्मय जो!
वह रे स्वयंप्रकाश अखंड प्रकाशवान!
धूप के टुकड़े को कला से भी अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि धूप का टुकड़ा _______
Answer (Detailed Solution Below)
Detailed Solution
Download Solution PDFधूप के टुकड़े को कला से भी अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि धूप का टुकड़ा कला को आकार देता है।
Key Points
- सुमित्रा नंदन पन्त जी ने प्रकृति के मानवीय भावों के चित्रण में विकृत तथा कठोर भावों को स्थान नहीं दिया है।
- सुमित्रा नंदन पन्त जी की छायावादी कविताएँ अत्यन्त कोमल एवं मृदुल भावों को अभिव्यक्त करती हैं।
- इन्ही कारणों से सुमित्रा नंदन पंत को 'प्रकृति का सुकुमार कवि' कहा जाता है।
Additional Information
- प्रस्तुत पद्य पंक्तियों की काव्यगत विशेषताएं इस प्रकार है -
- भाषा-साहित्यिक खड़ी बोली
- शैली–प्रतीकात्मक।
- रस-शांत।
- गुण-प्रसाद ।
- अलंकार-‘रूपक तथा उपमा
Important Point
- "1. उपमा अलंकार - जब दो भिन्न वस्तुओं में समानता दिखाई जाती है। जैसे – कर कमल-सा कोमल है।
- विशेष : -
- a) उपमेय : जिसकी उपमा दी जाय, अर्थात जिसकी समता दूसरे पदार्थ से दिखलाई जाय। ‘कर कमल-सा कोमल है’ में ‘कर अर्थात बाँह’ को कमल सा बताया जा रहा है अतः ‘कर’ उपमेय है।
- b) उपमान : जिससे उपमा दी जाय, अर्थात उपमेय को जिसके समान बताया जाय। ‘कर कमल-सा कोमल है’ में ‘कमल’ की तुलना ‘कर’ से की जा रही है अतः ‘कमल’ उपमान है।"
- 2. रूपक अलंकार - जब उपमान और उपमेय में अभिन्नता या अभेद दिखाया जाए। जैसे - मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों में चन्द्रमा और खिलौने में समानता न दिखाकर चन्द्र को ही खिलौना बोल दिया गया है।
- शांत रूस :-
- "अनित्य और असार तथा परमात्मा के वास्तविक ज्ञान से विषयों के वैराग्य से उत्पन्न रस परिपक्व होकर शांति में परिणत हो।
जैसे – मन रे तन कागद का पुतला। लागे बूंद बिनसि जाय छिन में, गरब करें क्या इतना।" - गुण के प्रकार :-
- ओज गुण– जहाँ कविता को पढ़कर ओज, जोश और उत्साह का भाव जाग्रत हो, 'वीर-रस' का संचार हो वहाँ 'ओज गुण' होता है। 'ओज गुण' की कविता में 'ट' वर्ग की प्रमुखता होती है।
उदाहरण-
एक क्षण भी न सोचो कि तुम होगे नष्ट,
कि तुम अनश्वर हो! तुम्हारा भाग्य है सुस्पष्ट। - प्रसाद गुण– जिस गुण विशेष के कारण सहृदय के चित्त में कोई कविता तत्काल अपेक्षित प्रभाव उत्पन्न करे और भाव स्पष्ट हो जाए वहाँ 'प्रसाद गुण' होता है।
उदाहरण-
जसुमति मन अभिलास करै
कब मेरौ लाल घुटुरुवनि रेंगे कब धरनी पग द्वैक धरै। - माधुर्य गुण-जिस गुण विशेष के कारण सहृदय का चित्त आनंद से द्रवित हो जाए, उसमें कठोरता अथवा विरक्ति पैदा न हो, उसे माधुर्य गुण कहते हैं। यह गुण प्रायः शृंगार, करुण और शांत रसों में रहता है। इस गुण सम्पृक्त रचना में 'ट' वर्ग के शब्द, पंचम वर्णों के संयोग से बने दीर्घ शब्द व लंबे पद नहीं होते।
उदाहरण-
'बीती विभावरी जाग री।
अंबर-पनघट में डुबो रही
तारा-घट ऊषा नागरी।"
Last updated on Apr 30, 2025
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